अमर होने का मतलब है दुनिया पर राज करना। अनंतकाल तक जीना और जो मन में हो वह करना। महाभारत में सात चिरंजीवियों का उल्लेख मिलता है। चिरंजीवी का मतलब अमर व्यक्ति। अमर का अर्थ, जो कभी मर नहीं सकते। ये सात चिरंजीवी हैं- राजा बाली, परशुराम, विभीषण, हनुमानजी, वेदव्यास, अश्वत्थामा और कृपाचार्य। हालांकि कुछ विद्वान मानते हैं कि मार्कंडेय ऋषि भी चिरंजीवी हैं। लेकिन इनमें से किसी ने भी अमृत ग्रहण नहीं किया था फिर भी ये अमर हो गए। अमर होने का रहस्य क्या है? इसे जानने से पहले हम जानते हैं कि आखिर अमृत मंथन क्यों हुआ था और किस-किस ने अमृत पिया था अंत में जानेंगे कि क्या अमृत आज भी प्राप्त किया जा सकता है…?

अमृत मंथन : दुर्वासा ऋषि की पारिजात पुष्पमाला का इंद्र ने उचित अपमान किया इससे रुष्ट होकर उन्होंने इंद्र को श्रीहीन होकर स्वर्ग से वंचित होने का श्राप दे दिया था | यह समाचार लेकर शुक्राचार्य दैत्यराज बाली के दरबार में पहुंचते हैं। वे दैत्यराज बाली को कहते हैं कि इस अवसर का लाभ उठाकर असुरों को तुरंत आक्रमण करके स्वर्ग पर कब्ज़ा लेना चाहिए। ऐसा ही होता है। दैत्यराज बाली स्वर्ग पर आक्रमण का देवताओं को वहां से बगा देता है।
इधर, असुरों से पराजित देवताओं की दुर्दशा का समाचार लेकर नारद ब्रह्मा के पास जाते हैं और फिर नारद सहित सभी देवता भगवान विष्णु के पास जाते हैं। भगवान विष्णु सभी को लेकर भगवन शिव के पास पहुंच जाते हैं। सभी निर्णय लेते हैं कि समुद्र का मंथन कर अमृत प्राप्त किया जाए और वह अमृत देवताओं को पिलाया जाए जिससे कि वे अमर हो जाएं और फिर वे दैत्यों से युद्ध लड़ें।
सभी देवता महादेव की आज्ञा से समुद्र मंथन की तैयारी करते हैं। भगवान के आदेशानुसार इन्द्र ने समुद्र मंथन से अमृत निकलने की बात दैत्यराज बाली को बताई और कहा कि अमृत का हम समान वितरण कर अमर हो जाएंगे। बाली को देवताओं की बात पर विश्वास नहीं होता है। तब नारद शिव के आदेशानुसार दैत्य सेनापति राहु के पास पहुंचकर उसे महादेव का संदेश सुनाते हैं। अंत में दैत्यराज बाली को शुक्राचार्य बताते हैं कि उन्हें महादेव की निष्पक्षता पर पूरा विश्वास है, यदि शिव समुद्र मंथन का कह रहे हैं तो अवश्य किया जाना चाहिए। दैत्यों के मान जाने के बाद मंदराचल पहाड़ को मथनी तथा वासुकि नाग को राशि बनाया जाता है। स्वयं भगवान श्री विष्णु कछुआ बनकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर उसका आधार बनते हैं।